तथागत बोधिसत्व का जन्म स्थली तीतिरा । बिहार , सारण कमिश्नरी के सिवान जिले के जीरादेई प्रखण्ड में स्थित ऐतिहासिक ,पुरातत्विक व धार्मिक गांव तीतिरा भगवान बुद्ध (गौतम ) के पूर्व जन्म का बयान करता है । इस गांव के दस किलोमीटर का चौकोर चौहदी प्रचुर मात्रा में पुरातत्विक साक्ष्यों से भरा पड़ा है जो भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा कराए गए परीक्षण उत्खनन से भी स्पष्ट हो गया जहाँ काफी संख्या में बौद्ध कालीन पुरातत्विक अवशेष व अन्य साक्ष्य मिले । स्थित – हिरण्यवती ( वर्तमान में सोना ) नदी के पश्चिमी तट के निकट राजस्व गांव तीतिरा टोले बुद्ध नगर बंगरा गांव में दो स्तूपनुमा टीला है जो आसपास में ही स्थित है जिसे ग्रामीण ,पुरतत्ववेदा तथा इतिहासकारों ने तीतिर स्तूप व हिरण स्तूप के रूप में चिन्हित किया है एवम इसी स्तूप के नाम पर राजस्व गांव तीतिरा व तीतिरा टोले हिरनौली गांव का नाम पड़ा है ।
तीतिर स्तूप पर पहुँचने का रास्ता – सड़क मार्ग व रेल मार्ग । सड़क मार्ग -सिवान मुख्यालय से मात्र 12 किलोमीटर पश्चिम सिवान -मैरवा मुख्य मार्ग पर तीतिरा टोले बुद्ध नगर बंगरा गांव में स्थित बुद्ध मंदिर से सटे उत्तर दिशा में स्थित है वही मैरवा से पूरब की ओर मुख्य सड़क मार्ग होते मात्र 7 किलोमीटर की दूरी तय कर तीतिर स्तूप पर पहुँचा जा सकता है । रेल मार्ग – सिवान रेलवे स्टेशन से पश्चिम 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जीरादेई रेलवे स्टेशन पहुँच वहाँ से पश्चिम मात्र दो किलोमीटर की दूरी तय कर तीतिर स्तूप पर पहुँचा जा सकता है । वही मैरवा रेलवे स्टेशन से पूरब मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित करछुई हाल्ट स्टेशन पहुँच ।वहाँ से दो किलोमीटर पूरब उक्त स्तूप पर पहुँचा जा सकता है ।
तीतिर स्तूप बिहार ,सिवान जिले के राजस्व गांव तीतिरा टोले बुद्धनगर बंगरा गांव में हिरण्यवती नदी (सोना नदी ) के पश्चमी तट के निकट स्थित है जो भगवान बुद्ध के बोधिसत्व के रूप में जन्म लेने का स्थान है जिसका वर्णन बौद्ध साहित्य के जातक के अनुसार चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने भी किया है। भगवान बुद्ध के पूर्वजन्म की कथाओं को ध्यान से पढ़ने पर हम पाते है कि सिवान स्थित किसनपुर गांव व मुइया नगर के आसपास का क्षेत्र उनके पूर्वजन्म की कथाओं को पुष्ट करता है ।भगवान ने आयुष्मान आंनद से कहा था -“आंनद यह नगर पूर्वकाल में समृद्ध तथा देश -देशान्तरों में प्रख्यात था ।इसकी अवहेलना नहीं की जा सकती ।मैं यहाँ छह बार मृत्यु को प्राप्त हुआ हूं व सातवें बार आया हूँ “। 1 तीतिर पक्षी के रूप में : अत्यंत प्राचीन काल में इस कुसीनारा के स्थान पर एक बड़ा भारी सघन वन था ।एक दिन अकस्मात बड़ी भारी आंधी आयी और वन में आग लग गयी ।उस समय एक तीतिर पक्षी भी इस शालवन (वन )में रहता था जो इस भयानक विपदा को देख कर दया व करुणा से प्रेरित हो उड़कर एक झील में गया व उसमें गोता लगा पानी भर लाया ।फिर अपने पैरों को फड़ -फड़ाकर उसने उस पानी को अग्नि पर छिड़क दिया ।इससे इंद्र देवता प्रसन्न हुए तथा अपने हाथ में जल लेकर उन्होंने आग पर छोड़ दिया जिससे वह शांत हो गयी । तीतिर का जन्म बोधिसत्व ने ही लिया था ।यह स्थान किसुन पुर व मुइया नगर के पास तीतिरा गांव में है ।यहाँ तीतिर स्तूप बना है जो आज भी धरातल से 20 फीट ऊंचा तथा तीन सौ फीट चौकोर है । इसी स्तूप के नाम पर तीतिरा गांव का नाम पड़ा हैं । 2 हिरन के रूप में : बोधिसत्व ने हिरण के रूप में भी यहां जन्म लेकर पशुओं के प्राण बचाये हैं ।यह स्थान भी तीतिरा ही है ।यहां भी हिरण स्तूप है तथा तीतिरा टोला हिरनौली (हिरौरी )गांव भी है ।यह स्तूप धरातल से 20 फीट ऊंचा तथा 100 फीट चौकोर है । 3 मछली के रूप में : बोधिसत्व ने मछली के रूप में भी यहां जन्म लिया था ,जो’ मोई ‘मछली के नाम से प्रसिद्ध है ।तीतिरा गांव के सिवाना पर मुइया एक गांव है ।ग्रामीण बताते है कि यहां ताल में मोई मछली बहुत पायी जाती थी जिसके चलते इस गांव का नाम मुइया पड़ा । ह्वेनसांग भी अपनी यात्रा वृतांत में कुइया नगरा का उल्लेख किया है जो वर्तमान मुइया कुइया का अपभ्रंश प्रतीत होता है क्योंकि यह स्थल भी तीतिर स्तूप से मात्र डेढ़ किलोमीटर दक्षिण व पूरब के कोने पर स्थित है ।तीतिर स्तूप के पास एक मछरिया मोड़ भी है जहां से एक छोटी नदीका बहती है तथा काफी मात्रा में यहाँ मछली मिलती है । आज भी यह सिवान मैरवा मुख्य मार्ग पर तीतिरा गांव के पश्चिमी सिवाना पर स्थित है जो मछरिया मोड़ के नाम से प्रसिद्ध है । मुइया गांव में भी स्तूपनुमा बहुत बड़ा टीला है जो आज भी धरातल से 30 फीट ऊंचा है तथा 500 सौ फीट चौकोर है जो किसी राजा के किले का प्रतिनिधित्व करता है तथा यहाँ प्रचुर मात्रा में एनबीपी डब्ब्ल्यू व धूसर मृदभांड तथा बुद्ध की खंडित प्रतिमाएं मिलते रहते है । 3 वृक्ष के रूप में : बोधिसत्व ने वृक्ष के रूप में भी जन्म लिया था ।यही कारण था कि उनके मानव जीवन की घटनाएं वृक्षों से भी जुड़ी हैं ।वृक्ष के नीचे जन्म ,ज्ञान व निर्वाण ।निर्वाण शालवन उपवतन में वृक्ष के नीचे हुआ था जो स्थान तीतिर स्तूप के निकट था । यहाँ आज भी वृक्ष से सम्बंधित दर्जनों गांव व टोला है यथा – बंगरा ,महुआबारी ,नवलपुर ,मालक पुर ,अमवसा ,बारी टोला ठेपहा, गूलर बागा ,अकोल्ही ,भलुवहीँ ,सीसहानि ,सेलरापुर ,पिपरहिया आदि गांव तथा प्रत्येक गांवों में वृक्षों के नीचे चैत्य बना हुआ है जहाँ लोग पूजा अर्चना किया करते है । 4 कछुए के रूप में : बोधिसत्व ने कछुए के रूप में जन्म ले ,हिरण की रक्षा किए थे । तीतिर स्तूप से तीन किलोमीटर पश्चिम विजयीपुर राजस्व गांव में बकुचिया डीह है जहाँ मल्ल यानी राजपूत लोग निवास करते थे तथा वहाँ बरईठा एक जगह है जहाँ पूर्व काल में ब्राह्मण व साधु लोग रहते थे ।आज भी यहाँ साधु रहते है तथा मंदिर भी है । यहाँ एक तलाब है जिसमें बहुत कछुआ रहा करता था ।इसी स्थल के पास करछुई स्टेशन भी है । 5 महाराज कुश के रूप में :पूर्व काल में कुसीनारा का नाम कुशावती था ।यहाँ इक्ष्वाकु ( ओक़् काक ) नामक राजा राज्य करते थे ।राजा बोधिसत्व ही थे ।आज भी किसुनपुर नामक गाँव हैं । किसुन पुर गांव – किसुनपुर गांव हिरण्यवती नदी एवम प्रखण्ड मुख्यालय से पशिचम ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव है ।वर्तमान समय में अधिकांशतः ब्राह्मण लोग इस गांव में निवास करते है यहाँ भी एक छोटी नदीका बहती है जिसे ग्रामीण सोनिया कहते है ।मात्र 50 वर्ष पूर्व तक इस गांव में आने का कोई रास्ता नहीं था ।गांव के पूरब की तरफ केवल पानी ही पानी रहता था ।डेंगी चलती थी ।उसी से लोग आते -जाते थे ।सिवान जिले के मानचित्र में भी इस स्थान पर फाहारा घाटी दिखाया गया है । यहाँ सामने स्थित एक कुँए की खुदाई हो रही थी तो उसके नीचे से नाव का टुकड़ा मिला था । इस गांव के पश्चिम व दक्षिण कोने पर आज भी झरही नामक नदी बहती है तथा मझवलिया पंचायत में लोहगांजर गांव के पास नदी किनारे बहुत सुंदर लगभग दस बीघा में चौकोर समतल टीला है जो कभी मल्ल राजाओं का श्मशान हुआ करता था । 6 चक्रवर्ती राजा महासुदर्शन के रूप में : पूर्वकाल में महासुदर्शन नामक चारोंदिशाओं पर विजय पाने वाला चक्रवर्ती राजा था ।महासुदर्शन की यही कुसीनारा नाम की राजधानी थी ।बोधिसत्व ही चक्रवर्ती राजा के रूप में जन्म लिए थे ।तीतिर स्तूप व तीतिरा गांव का पश्चमी सिवाना पर विजयीपुर नगर है जो सदैव विजय का सूचक है ।इस गांव के खतियान में मठीयान नामक स्थान दर्ज है जो 1 किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ था तथा यह ऊंचा खेत थे ।गांव के बुजुर्ग बताते है कि इस पर साधु लोग रहते थे ।वर्तमान में इसपर नहर बन गया है । इस गांव में दो प्राचीन डीह है जहाँ नव पाषाण काल के भी मृदभांड मिलते है ।
स्रोत अंग्रेज पुरातत्ववेदा डब्ब्ल्यू होय का आलेख ,कुसीनारा व वैशाली का चिन्ह ।कृष्ण कुमार सिंह की पुस्तक ‘प्राचीन कुसीनारा एक अध्ययन ‘पृष्ट 19व 35 -40 ।सारण व बिहार डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ,डायरेक्टरी ऑफ बिहार आर्कियोलॉजी बीपी सिन्हा, सिवान जनपद पर एक संदर्भ ग्रंथ सोनालिका ,केपी जयसवाल शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ जगदीश्वर पांडेय, डॉ डीआर पाटिल का पुस्तक एन्टीक्वेरियन रिमेन्स इन बिहार,पृष्ठ 37,इंडियन कल्चर ,अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ ,हिंदी व उर्दू अखबार क्रमशः दैनिक जागरण,हिंदुस्तान,प्रभात खबर,दैनिक भाष्कर ,राष्ट्रीय,सहारा ,आज ,जनादेश एक्सप्रेस ,तरंग मीडिया ,तंजीम,सिवान जिला प्रशासन द्वारा प्रकाशित स्मारिका एवम पत्रिका स्वत्व,एटीएन,दर्शन न्यूज़ ने सिवान के जीरादेई प्रखण्ड के राजस्व गांव तीतिरा टोले बुद्धनगर बंगरा गांव में चिन्हित किया है ।वही तीतिर स्तूप का वर्णन महावंश 21, 1-6,दीप वंश 3,32-33,दीघनिका 2/4,कुश जातक 531,हुएनसांग का भारत भ्रमण पृष्ट305,पृष्ट 306-7 vin, M V. K h-I जातक (Kh,10 )सिउन त्सी, प्रो युआन किंग (T-200 )पूर्णमुखावदनाष्टका, लियो तोऊ त्सी किंग (T, I52 ),चे किंग ( T.154 ),हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित “जह -जह चरन परे गौतम के “पृष्ठ 147,205 आदि में दर्ज है । [ पुरातत्विक साक्ष्य ।
सिवान जिला के पचरुखी प्रखण्ड के पपौर व जीरादेई प्रखण्ड के राजस्व गांव तीतिरा टोले बंगरा में स्थित तीतिर स्तूप है जिसका परीक्षण उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना अंचल के सहायक पुरातत्वविद जे एन तिवारी के नेतृत्व में 25 जुलाई 2015 से व सहायक पुरातत्वविद शंकर शर्मा के नेतृत्व में 20 जनवरी 2018 से 20 फरवरी 2018 तक कराया गया जिसमें प्रचुर मात्रा में पुरातात्विक साक्ष्य मिला । जैसे एंबीपीडब्ब्ल्यू ,धूसर मृद्भांड, टेराकोटा की दर्जनों मुर्तिया ,स्टाम्प ,टेराकोटा के खिलौने ,धूपदानी ,चीलम, पीली मिट्टी से बना छोटा स्तूप जैसा आवरण ,शीशा की गोली ,छोटा शिलालेख (जिस पर किसी लिपि में कुछ अंकित है )मौर्य कालीन ईंट से निर्मित पीलर साथ ही अन्वेषण के क्रम में मौर्य ,कुषाण व गुप्तकाल के मिश्रित ईंटो से निर्मित भवनावशेष ,तथा दो सौ फीट लम्बी दीवार की नींव तथा 30 फीट लम्बी 4 फीट चौड़ा दीवाल का अवशेष मिला । इस स्थल की विशेष महता का खुलासा पटना में बिहार सरकार के कला एवम संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित इंडियन आर्किलॉजिकल सोसाइटी ,इंडियन प्री हिस्ट्री एवम क्वाटनारी सोसाइटी के त्रिदिवसीय संयुक्त अधिवेशन ( 6 से 8 फरवरी 2019)में हुआ ।यह अधिवेशन बिहार की धरती पर पहली बार हुआ । इसमें तीतिरा स्तूप के परीक्षण उत्खनन कर्ता पुरतात्विद शंकर शर्मा ने अपना आलेख प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था “उतरी बिहार में पुरातात्विक उत्खनन में प्राप्त बाढ़ के अवशेष का प्रमाण “श्री शर्मा ने बताया कि गत वर्ष 2018 में तीतिरा,जीरादेई का परीक्षण उत्खनन में पुरातात्विक साक्ष्य के रूप में बाढ़ के स्तर का मिलना पूरी उत्तरी बिहार के गुप्तयुगीन पुरातात्विक सन्निवेश के पतन के कारण को उजागर करता है ।
सहायक पुरातत्वविद शंकर शर्मा ने भी परीक्षण उत्खनन के प्रतिवेदन में वर्णित किया है कि यह महत्वपूर्ण स्थल है इसकी प्राचीनता व ऐतिहासिक महत्व को जानने के लिये इतनी अल्प अवधि में संभव नहीं है ।उन्होंने बताया कि अन्वेषण के क्रम में जो भवनाशेस फर्श युक्त मिले वह प्राचीन नालंदा के भवनाशेष से मेल खाता है । साथ ही ,इस स्थल पर विदेशी बौद्ध भिक्षुओं की टीम सहित देश व प्रदेश के पर्यटक भी आते रहते है ।यहाँ भगवान बुद्ध की पूजा व आराधना होती रहती है ।यह बौद्ध अनुयायियों के लिये आस्था व धर्म का केंद्र विंदू है तथा इसके 5 किलोमोटर के क्षेत्र में चारों तरफ पुरातात्विक साक्ष्य व बुद्ध की खण्डित प्रतिमाएं मिलती रहती है । तीतिर स्तूप से कुछ ही दूरी पर दो और 30 से 40 फीट ऊंचा स्तूपनुमा टीला है ।जहां प्रचुर मात्रा में पुरातात्विक साक्ष्य बिखरे पड़े है ।
शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह ने बताया कि अगर पुरातत्व विभाग ईमानदारी पूर्वक इस स्थल पर काम करे तो दुनिया के सामने एक नवीन इतिहास का सृजन होगा । उन्होंने बताया कि दर्जनों इतिहासकारों ने पपौर को पावा व तीतिरा गांव में स्थित स्तूप नुमा टीला को तीतिर स्तूप माना है जिसका वर्णन ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत में किया है जो भगवान बुद्ध के पूर्वजन्म का व मानव जीवन के घटनाओं से संबंध रखता है ।शोधार्थी ने बताया कि इस स्थल की प्राचीनता व पुरातत्विक स्थल की वैज्ञानिक साक्ष्य तो भारतीय पुरातत्व विभाग अपने परीक्षण उत्खनन प्रतिवेदन में दे चुका है ।उन्होंने बताया कि यहाँ के विशाल बौद्ध विहार के अवशेष को ग्रामीणों व भारतीय रेलवे ने रेल पटरी के दोहरीकरण में ध्वस्त कर दिया जो ईंट बचा उसे क्षेत्रीय लोग ले जाकर अपने घरों में लगा दिए ,इस स्थल को पूर्व में 2009 में रेलवे के ठीकेदार ने इतना मिट्टी व ईंट निकाला अब यह छोटा तलाब का रूप ले लिया है फिर भी इसके विशाल नीव के चिन्ह व ईंट आज भी विद्यमान है। शोधार्थी ने बताया कि परीक्षण उत्खनन में जो छोटा शिलालेख मिला जो पानी में भी तैर रहा था तथा धरातल से 22 फीट नीचे मिला उस पर किसी लिपि में कुछ अक्षर अंकित है उसे पढ़ दिया जाय तो इस स्थल की वास्तविकता समझ में आ जायेगी पर दुःख इस बात की है कि अभी तक पुरातत्व विभाग इस लिपि को पढ़ नहीं पाया और न ही इसे इतिहासकारों के सामने ला रहा है । शोधार्थी ने बताया कि पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के अनुसार इस स्थल पर 22 सौ वर्ष तक का मानव गतिविधि पाया गया तथा गुप्तकाल के बाद का कुछ अवशेष नही मिला ।यह तथ्य बौद्ध स्थल का पुख्ता प्रमाण है ।क्योंकि बुद्ध के जीवन काल में यह मल्ल राजाओं का शालवन था तथा बुद्ध के महापरिनिर्माण के तीन सौ वर्ष बाद सम्राट अशोक ने यहाँ मिट्टी का स्तूप बनवाया तब से मानव गतिविधि आरम्भ हुई तथा गुप्तकाल के बाद यह स्थल वीरान हो गया । यानी पुरातत्व विभाग का कथन व इतिहास में दर्ज बातों में समानता है । शोधार्थी ने बताया कि यह ऐतिहासिक बहस का विषय है इस पर चर्चा होनी चाहिए ताकि इतिहास के वास्तविक निष्कर्ष पर पहुँचा जाय ।