प्रेम

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कोई कहता है प्रेम करो ।बुद्ध प्रेम पर बात ही नहीं करते ।वे कहते है राग, द्वेष व वैर का त्याग करो शेष जो बचेगा वही तो प्रेम होगा । राग ,द्वेष व वैर को दबा कर प्रेम नहीं हो सकता क्योंकि इस स्थिति में सुबह प्रशंसा करोगे व शाम को गाली दोगे यानी वैर व द्वेष का भाव हावी हो ही जायेगा ।एक बार बुद्ध के मुख पर कोई थूक दिया उन्होंने तुरंत अपनी चादर से पोंछ दिया और पूछा और कुछ कहना है ।पर आनन्द क्रोधित हो उठा ।वह भूल गया कि हम भिक्षुक है ।क्षत्रिय भाव जाग उठा ।वह बुद्ध ने कहा आनन्द रुक जाओ क्योंकि इसने जो किया वह क्षम्य है पर तुम जो करने जा रहे हो वह अक्षमय है ।आनन्द रुक जाता है ।बुद्ध कहते है ।आनन्द यह गाली देना चाह रहा था पर गाली दे नही पाया इस लिए थूकता है ।अब फिर बुद्ध उससे पूछते है कि बताओ क्या जानना चाहते हो ।वह लज्जित हो जाता है व बुद्ध के पैर पड़ क्षमा मांगता है ।वह कहता है कि मैं अधर्मी हूँ बहुत गलती किया हूँ ।अब आप मुझसे प्रेम नहीं करेंगे ।बुद्ध ने कहा तुम्हे छोड़ा ही कहाँ हूं । मैं इसलिए प्रेम नहीं करता हूँ कि तुम मुझे थूकोगें नहीं मेरे जीवन का जो शेष है वही प्रेम है ।

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