होश में चलो

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होश में चलो बुद्ध कहते है होश में चलो जग कर चलो ।स्वप्न देखते हो पर खुद को नहीं देख पाते ।एक बुढ़िया का सुई गिर जाता है ।वह खोजती है ,अंधेरा है राहगीर आते है वे भी खोजने लगते है ।सुई नहीं मिलता है ।सब परेशान होते है ।फिर बुढ़िया से पूछते है कि ठीक ठीक बताओ सुई कहाँ गिरा है ।बुढ़िया कहती है मेरे झोपड़ी में गिरा है ।राहगीर हँसने लगते है ,कहते है कितना मूर्ख हो ।सुई झोपड़ी में गिरा है और तुम रास्ते में खोज रही हो ।अंधेरा हो गया झोपड़ी में दीप जलाओ या सूर्य उगने की प्रतीक्षा करो सुई मिल जायेगा ।तुम पागल हो ।हा संत पागल होते है ।बुद्ध ने अंदर खोजा इसलिए परमात्मा की बात नहीं की क्योंकि वह बाहर नहीं है ।वह मंदिर ,मस्जिद व गुरुद्वारे व गिरजा घरों में नहीं है ।वह अंदर है ।वह कहते है अंदर की प्रकाश को जलाओ सुई मिल जाएगा यानी परमात्मा मिल जायेगा ।व्यर्थ का समय इधर उधर मत गवाओ ।कबीर व ओशो भी यही कहते है सब यही कहते है ।आनन्द बाहर नहीं अंदर है ।इसलिए होश में चलने की बात करते है ।





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