बचपन निश्छल है ,मग्न है ,तन व मन से भोला है । प्रेम से भरा ,राग द्वेष व अंहकार से रहित बुद्ध है । पर मेरे अंदर राग द्वेष अंहकार भरा है ,प्रेम मुरझाया है ,केवल ओठो पे बनावटी मुस्कुराहट है ।जो मेरे जीवन के उत्सव व उल्लास में बाधा है ।यही हारने का कारण है । बुद्ध बनना आसान नहीं , जीवन समझना कठिन राह है ,जीते तो सब है पर जीवन की कला समझना आसान नहीं ,दुनिया में जीते तो सब है पर दुनिया समझना आसान नहीं ।जो अपने को समझ बैठा वह बुद्ध को जान गया ।जो जान गया बुद्ध को वह दुनिया को समझ लिया । नमो बुद्धाय ।