तीतिर स्तूप

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तितिर स्तूप विकास पहल लौटा सकती है सिवान का गौरव!
देश के पर्यटन मानचित्र पर आते ही सिवान में बहेगी खुशहाली और समृद्धि की बयार ।
प्राचीन कुशीनारा के सिवान में होने के ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य दे रहे संकेत ।
सार्थक और समन्वित प्रयास हो तो बदल जायेगा सिवान का परिदृश्य ।
जीरादेई । प्रखण्ड क्षेत्र में स्थित तीतिर स्तूप के पुरातात्विक ,ऐतिहासिक एवम धार्मिक महत्व पर गुरुवार को व्याख्यान देते प्रखर विद्वान , वरिष्ठ पत्रकार एवम पाठक आई ए एस कोचिंग सिवान के निदेशक गणेशदत्त पाठक ने बताया कि सिवान के गौरवशाली इतिहास के पन्ने को पलटते-पलटते मानस में मंथन की कई तरंगे निकली। उन्होंने कहा कि अगर सिवान के प्राचीन कुशीनारा होने के संकेत ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य देते दिख रहे हैं तो फिर इतनी उदासीनता क्यों? सिवान के बारे में अगर महात्मा बुद्ध के आगमन के संकेत मौजूद है तो फिर इतनी शिथिलता क्यों? तितिर स्तूप के साक्ष्य जब दिख रहे हैं तो फिर इंतजार किस बात का हो रहा है? जब सिवान में प्रसिद्ध बौद्ध और पर्यटक स्थल बनने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं तो फिर हमारे नीति नियंता हाथ पर हाथ धरे कैसे बैठे हैं? श्री पाठक ने बताया कि सिवान में मिले पुरातात्विक साक्ष्य एक समर्पित प्रयास की मांग करते दिख रहे हैं। जिसका नहीं होना, सिवान के गौरवपूर्ण अतीत के लिहाज से अन्यायपूर्ण और आनेवाली पीढ़ी के संदर्भ में अक्षम्य है। आवश्यकता इस बात की है कि सबसे पहले पुरातात्विक उत्खनन से तथ्यों की शत प्रतिशत पुष्टि कर तितिर स्तूप सहित सिवान के अन्य बौद्धिक स्थलों के विकास की कार्ययोजना बनाकर शीघ्र उसे अमल में लाया जाए। उन्होंने कहा कि इससे सिवान का गौरवशाली अतीत का संदर्भ सिवान के वर्तमान परिदृश्य को बदल कर रख देगा। सिवान देश के पर्यटन मानचित्र में चमक उठेगा। सिवान की जनता भी निहाल हो उठेगी। श्री पाठक ने कहा कि सिवान के प्राचीन कुशीनारा होने के ऐतिहासिक प्रमाण
श्री कृष्णकुमार सिंह की पुस्तक के मुताबिक, दुनियाभर के पुरातत्ववेता और इतिहासकार तीन स्थलों को प्राचीन कुशीनारा के रूप पहचानने के प्रयास किए हैं – पहला उत्तर प्रदेश का कसिया, सिवान का तितरा गांव और मुज्जफरपुर के कुशी गांव। अंग्रेज पुरातत्ववेता डब्लू होय ने सिवान को ही प्राचीन कुशीनारा माना है। होय ने 1899 ईसवी में सिवान के तितिरा गांव में सर्वेक्षण के क्रम में एक बड़ा स्तूप देखा था। वस्तुतः यह तितिर स्तूप ही है जिसका उल्लेख ह्वेनसांग ने कुशीनारा के वर्णन के क्रम में किया है। इसी तितिर स्तूप के नाम पर गांव का नाम तितिरा पड़ा। दर्जनों इतिहासकारों ने भी होए के बात का समर्थन किया है। प्रसिद्ध इतिहासकार और काशीप्रसाद शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डॉक्टर जगदीश्वर पाण्डेय भी पुस्तक ‘सोनालिका’ में महापरिनिर्वाण सूत के आधार पर तितिरा को ही प्राचीन कुशीनरा के तौर पर हिरण्यवती नदी के माध्यम से साबित करते दिखते हैं। इस स्थल की प्राचीनता का उल्लेख सारण डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, सिवान जिला प्रशासन द्वारा प्रकाशित स्मारिका में भी है। उन्होंने कहा कि सिवान के गौरव के पुरातात्विक साक्ष्य
शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह बताते हैं कि सिवान के जीरादेई प्रखण्ड के तितिरा टोले बंगरा में स्थित तितीर स्तूप का परीक्षण उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, पटना अंचल के सहायक पुरातत्वविद शंकर शर्मा के नेतृत्व में 20 जनवरी, 2018 से 20 फरवरी, 2018 तक कराया गया, जिसमें प्रचुर मात्रा में पुरातात्विक साक्ष्य मिला । जैसे एंबीपीडब्ब्ल्यू,धूसर मृद्भांड, टेराकोटा की दर्जनों मूर्तियां ,स्टाम्प ,टेराकोटा के खिलौने , पीली मिट्टी से बना छोटा स्तूप जैसा आवरण ,शीशा की गोली ,छोटा शिलालेख (जिस पर किसी लिपि में कुछ अंकित है ), मौर्य कालीन ईंट से निर्मित स्तंभ। साथ ही, अन्वेषण के क्रम में मौर्य ,कुषाण व गुप्तकाल के मिश्रित ईंटो से निर्मित भवनावशेष तथा दो सौ फीट लम्बी दीवार की नींव तथा 30 फीट लम्बी 4 फीट चौड़ा दीवाल आदि महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले हैं। इस स्थल की विशेष महता का खुलासा पटना में बिहार सरकार के कला एवम संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित इंडियन आर्किलॉजिकल सोसाइटी ,इंडियन प्री हिस्ट्री एवम क्वाटनारी सोसाइटी के त्रिदिवसीय संयुक्त अधिवेशन ( 6 से 8 फरवरी 2019)में हुआ। इसमें तितिर स्तूप के परीक्षण उत्खननकर्ता पुरातत्वविद शंकर शर्मा ने अपना आलेख प्रस्तुत किया, जिसका शीर्षक था “उतरी बिहार में पुरातात्विक उत्खनन में प्राप्त बाढ़ के अवशेष का प्रमाण “। श्री शर्मा ने बताया कि गत वर्ष 2018 में तितिरा,जीरादेई का परीक्षण उत्खनन में पुरातात्विक साक्ष्य के रूप में बाढ़ के स्तर का मिलना, पूरी उत्तरी बिहार के गुप्तयुगीन पुरातात्विक सन्निवेश के पतन के कारण को उजागर करता है। सहायक पुरातत्वविद शंकर शर्मा ने प्रतिवेदन में वर्णित किया है कि अन्वेषण के क्रम में जो भवन के अवशेष फर्श युक्त मिले, वह प्राचीन नालंदा के भवनाशेष से मेल खाते हैं । श्री पाठक ने बताया कि आते रहते हैं देश विदेश के बौद्ध श्रद्धालुगण
साथ ही ,इस स्थल पर विदेशी बौद्ध भिक्षुओं की टीम सहित देश व प्रदेश के पर्यटक भी आते रहते हैं । यहाँ भगवान बुद्ध की पूजा व अर्चना की जाती है। इतने सारे प्रमाणों के बाद भी तितिर स्तूप के इतिहास को जानने, समझने का प्रयास अभी सतही स्तर पर ही है। सरकार तक संदेश पहुंचाने के लिए ज्ञापनों का सहारा लिया जा रहा है। प्रशासन के हर स्तर पर ज्ञापन आदि के माध्यम से दस्तक दी जाती रही हैं। अभी हाल में श्री कृष्णाकुमार सिंह द्वारा बिहार के पर्यटन मंत्री को तितिर स्तूप के बारे में बताया गया। दिलासा, आश्वासनों का लंबा कारवां।आश्वाशन कब तक पूरे होंगे, यह एक बड़ा सवाल है?
बौद्ध स्थल के रूप में सिवान का विकास बदल देगा मंजर । श्री पाठक ने कहा कि यदि सरकार तितिर स्तूप के बारे में खोज, उत्खनन के प्रभावी प्रयास करे और सत्य तक पहुंच जाया जाए तो सिवान का परिदृश्य ही बदल सकता है। उन्होंने कहा कि सिवान के लोगों को अपने अतीत के गौरव पर गर्व तो होगा ही। प्रतिवर्ष लाखों पर्यटकों का आगमन सिवान के लिए खुशियों की बयार लायेगा। होटल, भोजनालय, परिवहन साधनों की आवश्यकता सिवान के विकास की एक नई गाथा लिख डालेगी। श्री पाठक ने कहा कि बेरोजगार युवाओं को स्थानीय स्तर पर मिलेगा रोजगार बाहर जाने की आवश्यकता को कम करेगा। उन्होंने बताया कि पर्यटन स्थल के रूप में आधारभूत सुविधाओं का विकास सिवान का काया कल्प कर जाएगा। बस आवश्यकता समन्वित और संवेदनशील प्रयास की है। निश्चित तौर पर तितिर स्तूप स्थल विकास की कार्ययोजना को अमली जामा पहुंचाने में प्रशासन, जनप्रतिनिधियों, मीडिया आदि को मिलजुलकर प्रयास करना होगा। उन्होंने बताया कि
प्रशासन के पास कार्यबोझ का दवाब अवश्य है लेकिन थोड़ा सा प्रयास सिवान के गौरव को संवार जायेगा। राजनीतिक नेतृत्व को भी दलगत राजनीति से दूर होकर सिवान के गौरवपूर्ण इतिहास के मामले पर समन्वित प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मीडिया को भी तितिर स्तूप विकास संबंधी खबरों को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने के प्रयास करना चाहिए। साथ ही, जनता को भी इस मसले को मुद्दा बनाने में सहयोग करना चाहिए। सिवान के उनलोगो जिनकी पहुंच सरकार के उच्च स्तर तक है। अपने मातृभूमि के गौरव को वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। ध्यान रहें कि यदि ये प्रयास हो जाते हैं तो सिवान की आनेवाली पीढ़ी अपने पूर्वजों के प्रयासों पर गर्व कर सकेगी। श्री पाठक ने बताया कि सिवान में तितिर स्तूप का विकास इतिहास का संदर्भ ही नहीं बदलेगा, वर्तमान को भी गढ़ेगा और भविष्य तो शानदार होना ही हैं ।

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