सिवान के किशुनपुर में प्राचीन कुशीनारा से मिलते जुलते ऐतिहासिक साक्ष्य!
तितिर स्तूप विकास पहल आलेख श्रृंखला भाग 02
लेखक: गणेश दत्त पाठक (वरिष्ठ पत्रकार)
आवश्यकता पर्याप्त शोध और अनुसंधान की, ताकि सत्यता पूरी तरह सत्यापित हो सके
निश्चित तौर पर जनप्रतिनिधियों को ही निभाना होगा पहल का दायित्व
बौद्ध स्थल के तौर पर सत्यापित होते ही देश के पर्यटन मानचित्र में चमक उठेगा सिवान
सिवान। कई बौद्ध ग्रंथ और ऐतिहासिक प्रमाण सिवान के किशुनपुर गांव का तारतम्य प्राचीन कुशीनारा से स्थापित करते दिख रहे हैं। हालांकि इस पर अभी और शोध की आवश्यकता है। इसलिए ऐतिहासिक संकेतों को देखते हुए सिवान के गौरवशाली अतीत की खोज में केंद्र और राज्य सरकार के स्तर पर सार्थक पहल की दरकार है। लेकिन देश के लोकतांत्रिक परिवेश में जनप्रतिनिधि ही किसी भी पहल के मुख्य आयाम हो सकते हैं।आस जरूर लगाई जा सकती हैं कि सिवान के जनप्रतिनिधि, चाहे वो किसी भी दल से संबंधित हों, अपने मातृभूमि और कर्मभूमि के गौरव की पुनर्स्थापना हेतु समर्पित प्रयास अवश्य करेंगे।
सिवान के किशुनपुर का सामाजिक परिदृश्य बौद्धकाल जैसा
सिवान के गौरव पर अथक परिश्रम से परिपूर्ण स्तरीय शोध करनेवाले श्री कृष्ण कुमार सिंह अपनी पुस्तक ‘प्राचीन कुशीनारा:एक अध्ययन’ में हवाला देते हैं कि बौद्ध ग्रंथ महापरिनिर्वाण सूत में उल्लिखित हैं कि जिस समय भगवान बुद्ध कुशीनारा में निर्वाण के लिए पधारे थे, उस समय यहां ब्राह्मण, कुलीन(मल्ल राजा), धनवान और गृहस्थ निवास करते थे। आज के परिवेश में भी यहां बौद्ध काल का ही सामाजिक परिवेश दृष्टिगोचर होता है। जैसे किशुनपुर मिश्रौली, पांडेय पुर (अब चंदपाली, जो मुस्लिम बहुल है), सुरवल, भरथुई गढ़, भरथुवा, सिस हानी, भलवई, सेलरापुर, तीतरा, ठेपहा, मुईआ, अकोल्ही, विजयीपुर, मझवालिया आदि गांवों में सामाजिक परिदृश्य बौद्ध ग्रंथ की जानकारी से मेल खाते दिखते हैं। पांडेयपुर में आज भी प्राचीन अवशेष मृदभांड के रूप में दिख जाते हैं।
सिवान के किशुनपुर की भौगोलिक स्थिति प्राचीन कुसीनारा से सटीक बैठती है
शोधार्थी श्री कृष्ण कुमार सिंह अपने पुस्तक में बताते हैं कि बौद्ध ग्रंथों और तीर्थ यात्रियों के वर्णन के अनुसार, वास्तविक कुशीनारा की स्थिति हिरण्यवती यानी सोना नदी के पश्चिम में होना चाहिए, पावा(पपउर) से पश्चिम का स्थान जो वैशाली से पश्चिम ककुत्था (दाहा नदी ) से पश्चिम होना चाहिए। सिवान के किशुनपुर गांव की भौगोलिक स्थिति भी यही है। बौद्धग्रंथ दीघ निकाय की अट्ट कथा के मुताबिक कुशीनारा से पावा 0.75 योजन यानी 13 किलोमीटर है। इस तरह से सिवान का किशुनपुर सटीक बैठता है। पिप्पली वन के मोरियो के अंगार स्तूप से कुसीनारा को 12 योजन यानी 140 किलोमीटर दूर बताया गया है। सिवान वहां से आज भी 140 किलोमीटर दूर है। जबकि यूपी का कसिया मात्र 4 योजन यानी 48 किमी की दूरी पर ही मौजूद है।
सिवान के किशुनपुर के पास मल्लो के श्मशान और शालवन के भी संकेत
शोधार्थी श्री कृष्ण कुमार सिंह अपने पुस्तक में बताते हैं कि कुसीनारा के दक्षिण में एक नदी बहती थी, जिसके किनारे कुशीनारा के मल्लों का श्मशान था। सिवान के किशुनपुर गांव से दक्षिण सेलरापुर बिकवुर मझवलिया के पास करीब 20 बीघे का एक गढ़ है। यहां आज भी श्मशान है। वहीं कटवार गांव में भी बहुत बड़ा गढ़ है तथा वह मल्ल जाति आज भी है। बौद्धग्रंथ दीघ निकाय की अट्ट कथा के मुताबिक, यहां मल्लो का राजोद्यान था। किशुनपुर के पास दो शालवन के संकेत दिख रहे हैं।एक उत्तर में वर्तमान वानीगढ़ तितीरा टोला बंगरा में और दूसरा पश्चिम में सेलरापुर झरही नदी से सटे क्षेत्र में। इस बात का उल्लेख ‘कुशीनगर के इतिहास’ पुस्तक में त्रिपिटक आचार्य भिक्षु धर्मरक्षित भी करते हैं।
मिले ऐतिहासिक तथ्यों पर पर्याप्त शोध की दरकार
ये सारे ऐतिहासिक प्रमाण और 2018 के खुदाई में मिले पुरातात्विक साक्ष्य, सिवान के किशुनपुर के प्राचीन कुशीनारा होने के संकेत दे रहे हैं तो अब आवश्यकता इस बात है कि इन संकेतों पर पर्याप्त शोध किया जाए और इन संकेतों की सत्यता को सत्यापित किया जाए। निश्चित तौर पर इसमें केंद्र और राज्य सरकार को भूमिका निभाना होगा। यदि ये संकेत पूरी तरह सत्यापित हो जाते हैं तो सिवान का प्राचीन गौरव एक बार फिर साबित हो जायेगा। इससे सिवान बौद्ध श्रद्धालुओं के आगमन का केंद्र बनेगा। तितिर स्तूप आदि स्थलों के कारण सिवान देश के पर्यटन मानचित्र में चमक उठेगा।
देश के लोकतांत्रिक परिवेश में जनप्रतिनिधियों की पहल ही होगी महत्वपूर्ण
निश्चित तौर पर सिवान की ऐतिहासिकता को साबित करने के लिए विशेष पहल की दरकार है। देश के लोकतांत्रिक परिवेश को देखते हुए यह पहल हमारे माननीय जनप्रतिनिधियों को ही निभाना होगा। इस पहल के लिए दल की कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए। सिवान के गौरवपूर्ण इतिहास के सवाल पर चाहे वो हमारे नेतागण किसी भी दल के हो। सार्थक, संवेदनशील, समर्पित प्रयास में कोई कमी नहीं छोड़ें। अगर ये प्रयास अमलीजामा पहनते हैं तो आज के हमारे नेता गण सदियों सदियों तक सिवान के लोगों के मस्तिष्क में प्रतिष्ठित रूप से अंकित रहेंगे। जब राजनीतिक स्तर पर प्रयास होगा तो प्रशासनिक महकमा भी सचेत होगा। फिर मीडिया भी समय की मांग को देखते हुए अपने कवरेज में स्थान देना शुरू करेगी।
अभी सबसे पहली आवश्यकता सिवान के प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों की सत्यता को पूरी तरह सत्यापित करना ही हैं। सिवान के गौरव की वापसी के लिए सिवान के हर जन को अपनी सहभागिता निभानी होगी। यदि यह प्रयास समय रहते हो गया तो सिवान के प्राचीन गौरव के श्रृंगार से सिवान का वर्तमान प्रफुल्लित और भविष्य गौरवान्वित हो जायेगा।
सादर, गणेश दत्त पाठक वरिष्ठ पत्रकार
फोटो कैप्शन- श्रद्धा का सर्वेक्षण: बौद्ध भिक्षुगण को सिवान के किशुनपुर क्षेत्र के पास के जंगलों में शोधार्थी श्री कृष्ण कुमार सिंह।