जीरादेई

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इतिहासकारों ,शिक्षकों व बौद्ध साहित्य के जानकारों से बौद्ध कालीन नदियों के बारे में प्रश्न । कहाँ की निदियों का सम्बंध बुद्ध के जीवन काल से है तथा कौन सटीक प्रतीत होती है । 1 ककुत्था नदी ,हिरण्यवती नदी व सदानीरा नदी ।जो बौद्ध साहित्य में वर्णित है । ये तीनों नदियां सिवान बिहार में विद्यमान । 2 सिवान के दहा नदी का प्राचीन नाम – ककुत्था सोना नदी का प्राचीन नाम – हिरण्यवती । सदानीरा – सरयू नदी जो तीनों सिवान में विद्यमान है ।दहा व सोना बरसाती नदी है । स्रोत – अंग्रेज पुरातत्वविद डब्लू होय ,सारण डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ,सिवान जनपद पर एक संपूर्ण संदर्भ ग्रंथ -सोनालिका ,प्राचीन कुसीनारा का एक अध्ययन । गॉडेस .ए (1060 )अल्युवयल मरफॉलजी ऑफ इंडो -गंगेटिक प्लेन :इट्स मैपिंग एंड ज्योग्राफिकल सिंनिफिकेन्स ,ट्रांजेक्शन एंड पेपर्स इंस्टीच्यूट ऑफ ब्रिटिश ज्योग्राफर्स नम्बर 28.डिस्ट्रिक्ट हैंड बुक सिवान ,सीरीज 4.बिहार 1981। डायरेक्टरी ऑफ बिहार आर्कियोलॉजी -डॉ बीपी सिन्हा, ऑन द फुट प्रिंट्स ऑफ बुद्धा – डॉ जगदीश्वर पांडेय , सिवान जिला प्रशासन द्वारा प्रकाशित स्मारिका तथा दैनिक समाचार पत्रों ,पत्रिकाओं , दूरदर्शन पर प्रसारण ,न्यूज़ 18 ,जी न्यूज़ पर प्रसारण लोकल चैनल एक दर्जनों इतिहाकारों का आलेख ।
कसिया (यूपी के कुशीनगर ) की नदियां कुछ लेखकों ने बड़ी गंडक और छोटी गंडक महि नदी को हिरण्यवती राप्ती नदी को ककुत्था ।फिर ए कनिघम ने तो रोहनाला को ही हिरण्यवती नदी बताया है जो कृत्रिम नाला है । कसिया की गंडक व राप्ती नदी सालोभर बहती है आज से ढाई हजार वर्षपूर्व यह दोनों नदिया और बड़ी होगी । तो इस स्थिति में उस समय जब भगवान बुद्ध का कुसीनारा का अंतिम यात्रा था तो कैसे राजकुमार पुक्कुस कुसीनारा से पावा जाने के क्रम में पांच सौ बैलगाड़ियों के साथ इस विशाल नदी को पार किए होंगें जब कि उस समय पुल नहीं था । वही सिवान की ककुत्था तथा हिरण्यवती नदियां बरसाती नदी तथा अतिलघु है । भगवान का अंतिम यात्रा गर्मी के मौषम में हुआ था । इसमें मुगलकाल तथा अंग्रेजी काल के प्रारंभिक समय तक लोग अपनी बैल गाड़ी को गर्मी के दिनों में पार करा देते थे । फिर आनन्द द्वारा कहना कि नदी का पानी बैल गाड़ियों के जाने से गंदा हो गया है यह बात भी बताता है कि नदी अति लघु होगी । स्रोत -कुसीनारा का इतिहास लेखक – त्रिपितकचार्य डॉ भिक्षु धर्म रक्षित । नोट – कुसीनारा के इतिहास में वर्णित है कि हिरण्यवती नदी के पश्चिम कुछ दूरी पर कोई छोटी सी नदी बहती थी ।आज भी सिवान के हिरण्यवती (सोना ) के पश्चिम मैरवा में झरही नामक छोटी नदी बहती है ।
नोट वर्ष 2015 तथा 2018 में ककुत्था व हिरण्यवती नदी सिवान का विदेशी बौद्ध भिक्षुओं ने दर्शन व पूजा पाठ किया ।

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