महात्मा गौतम बुद्ध का पंचशील सिद्धान्त

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महात्मा गौतम बुद्ध का पंचशील सिद्धान्त

पंचशील —– “इसका पहला शील है – ‘अहिंसा ‘। प्रत्येक प्राणी मृत्यु से भयभीत रहता है ।यदि हम परस्पर समझ और प्रेम का मार्ग सच्चे ह्रदय से अपनाते हैं ,तभी इस सिद्धांत का पालन कर सकते हैं ।हमें मानव जीवन की ही नहीं ,पशुओं और प्राणीमात्र के जीवन की भी रक्षा करनी चाहिए ।इस नियम का पालन करने से दया भाव और ज्ञान का उदय होता है । दूसरा शील है —अचौर्य अर्थात चोरी नहीं करनी है ।हमें किसी की भी सम्पत्ति चुराने का अधिकार नहीं है और न किसी अन्य के श्रम का लाभ उठाकर धन -प्राप्ति का अधिकार है ।हमें ऐसा मार्ग खोजना चाहिए जिससे अन्य लोगों को अपने पैरों पर खड़े होने में सहायता दी जा सके । तीसरा शील है –इन्द्रिय -भोग से विरति ।अन्य लोगों के अधिकारों और मान्यताओं का उल्लंघन नहीं करना है ।पत्नी सदैव अपने पति के प्रति और पति अपने पत्नी के प्रति सदैव निष्ठावान रहे । “चतुर्थ शील है —असत्य -भाषण से विमुखता ।ऐसे वचन मत बोलो जिसमें सत्य को तोड़ा -मडोडा गया हो या जिससे दो ह्रदयों में वैमनस्य या घृणा जागृत हो ।जिस बात के बिषय में आप स्वयं निश्चित न हों ,ऐसी खबर दूसरों को न दें । “पंचम शील — मदिरा या अन्य उत्तेजक पदार्थ का सेवन न करें ।”
“यदि आप इन पंचशीलों की भावना के अनुसार जीवन बिताएंगे तो इससे न केवल आप स्वयं कष्टों और जागतिक विकृतियों से बचेंगे ,वरन अपने परिवार और अपने मित्रों को भी बचाएंगे ।आप पाएंगे कि जीवन में प्रसन्नता न जाने कितनी गुनी हो गयी है ।”

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