पुरातत्विक साक्ष्य से मिल रही भारतीय पुरातत्विक इतिहास को नयी दिशा।
मौर्य काल से लेकर गुप्तकाल तक का प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध ।
सिवान के प्राचीन इतिहास व संस्कृति को जानने के लिये क्षैतिज उत्खनन आवश्यक ।
सिवान जिला के पचरुखी प्रखण्ड के पपौर व जीरादेई प्रखण्ड के राजस्व गांव तीतिरा टोले बंगरा में स्थित तीतिर स्तूप है जिसका परीक्षण उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना अंचल के सहायक पुरातत्वविद जे एन तिवारी के नेतृत्व में 25 जुलाई 2015 से व सहायक पुरातत्वविद शंकर शर्मा के नेतृत्व में 20 जनवरी 2018 से 20 फरवरी 2018 तक कराया गया जिसमें प्रचुर मात्रा में पुरातात्विक साक्ष्य मिला । जैसे एंबीपीडब्ब्ल्यू ,धूसर मृद्भांड, टेराकोटा की दर्जनों मुर्तिया ,स्टाम्प ,टेराकोटा के खिलौने ,धूपदानी ,चीलम, पीली मिट्टी से बना छोटा स्तूप जैसा आवरण ,शीशा की गोली ,छोटा शिलालेख (जिस पर किसी लिपि में कुछ अंकित है )मौर्य कालीन ईंट से निर्मित पीलर साथ ही अन्वेषण के क्रम में मौर्य ,कुषाण व गुप्तकाल के मिश्रित ईंटो से निर्मित भवनावशेष ,तथा दो सौ फीट लम्बी दीवार की नींव तथा 30 फीट लम्बी 4 फीट चौड़ा दीवाल का अवशेष मिला ।
इस स्थल की विशेष महता का खुलासा पटना में बिहार सरकार के कला एवम संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित इंडियन आर्किलॉजिकल सोसाइटी ,इंडियन प्री हिस्ट्री एवम क्वाटनारी सोसाइटी के त्रिदिवसीय संयुक्त अधिवेशन ( 6 से 8 फरवरी 2019)में हुआ ।यह अधिवेशन बिहार की धरती पर पहली बार हुआ । इसमें तीतिरा स्तूप के परीक्षण उत्खनन कर्ता पुरतात्विद शंकर शर्मा ने अपना आलेख प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था "उतरी बिहार में पुरातात्विक उत्खनन में प्राप्त बाढ़ के अवशेष का प्रमाण "श्री शर्मा ने बताया कि गत वर्ष 2018 में तीतिरा,जीरादेई का परीक्षण उत्खनन में पुरातात्विक साक्ष्य के रूप में बाढ़ के स्तर का मिलना पूरी उत्तरी बिहार के गुप्तयुगीन पुरातात्विक सन्निवेश के पतन के कारण को उजागर करता है ।
इस स्थल के प्राचीनता का उल्लेख अंग्रेज पुरातत्वविद डब्लू होय सहित दर्जनों भारतीय इतिहासकारों ने किया है तथा सारण डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में भी उल्लेख है ।
सहायक पुरातत्वविद शंकर शर्मा ने भी परीक्षण उत्खनन के प्रतिवेदन में वर्णित किया है कि यह महत्वपूर्ण स्थल है इसकी प्राचीनता व ऐतिहासिक महत्व को जानने के लिये इतनी अल्प अवधि में संभव नहीं है ।उन्होंने बताया कि अन्वेषण के क्रम में जो भवनाशेस फर्श युक्त मिले वह प्राचीन नालंदा के भवनाशेष से मेल खाता है ।
साथ ही ,इस स्थल पर विदेशी बौद्ध भिक्षुओं की टीम सहित देश व प्रदेश के पर्यटक भी आते रहते है ।यहाँ भगवान बुद्ध की पूजा व आराधना होती रहती है ।यह बौद्ध अनुयायियों के लिये आस्था व धर्म का केंद्र विंदू है तथा इसके 5 किलोमोटर के क्षेत्र में चारों तरफ पुरातात्विक साक्ष्य व बुद्ध की खण्डित प्रतिमाएं मिलती रहती है । तीतिर स्तूप से कुछ ही दूरी पर दो और 30 से 40 फीट ऊंचा स्तूपनुमा टीला है ।जहां प्रचुर मात्रा में पुरातात्विक साक्ष्य बिखरे पड़े है ।
सिवान की प्राचीन नदी ककुत्था व हिरण्यवती तथा सदानीरा सरयू जिसका वर्णन बौद्ध साहित्य में है तथा इसके पश्चमी तट के निकट उक्त स्थल का होना ,इसके पास किशुनपुर, तीतिरा व हिरण्यवली गांव के साथ ही शालवन से संबंधित गांव बंगरा ,महुआबारी ,गुलरबगा ,बारी टोला ,आमवसा ,नवल पुर (नवल लता एक पौधा ) ,अकोल्ही( अकोल का पेड़ ) सीसहानि (शीशम का पेड़ ),भलुवही(भिलावा एक औषधीय पौधे )सेलरा पुर ( सागवान का पेड़ ) पिपरहिया (पीपल का पेड़ )उक्त सभी गांव शालवन का प्रतीक है । साथ ही चीनी तीर्थयात्री फाहियान व हुएनसांग द्वारा कुइया नगरा का वर्णन करना तथा यहाँ मुइया नगरा होना ,मीठा कुंआ होना ,तथा लौरिया नन्दन गढ़ के स्तूप से इसका दूरी 12 योजन होना राम ग्राम देवरिया से पूरब होना ,ब्राह्मणों का प्राचीन शहर दरौली होना आदि उक्त सभी तथ्य शोध एवं ऐतिहासिक बहस का विषय है । वही पावा का अपभ्रंश पपौर गांव इसके आसपास बैशाखी गांव ,बागवान से सूचक गांव सीसवनिया आदि होना ,मुकुट बंधन से सम्बंधित मुकुट छापर गांव होना यहाँ बौद्ध कालीन पुरातत्विक साक्ष्य मिलना प्राचीन पावा का स्वरूप बताता है
जदयू सांसद कविता सिंह व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने पंचशील के सचिव कृष्ण कुमार सिंह के आवेदन के आलोक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से अनुरोध किया है कि उक्त तथ्यों के आलोक में जनआकांक्षा को देखते हुए पुरातात्विक स्थल घोषित कर तथा प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों की संरक्षण की दिशा में ठोस पहल कर इसका क्षैतिज उत्खनन कराया जाए ताकि सिवान का गौरवशाली ,सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक इतिहास की वैज्ञानिक जानकारी मिल सके तथा सिवान की जनता का वर्षो से चली आ रही मांग का अमली जामा पहनाया जा सके।
शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह ने बताया कि अगर पुरातत्व विभाग ईमानदारी पूर्वक इस स्थल पर काम करे तो दुनिया के सामने एक नवीन इतिहास का सृजन होगा । उन्होंने बताया कि दर्जनों इतिहासकारों ने पपौर को पावा व तीतिरा गांव में स्थित स्तूप नुमा टीला को तीतिर स्तूप माना है जिसका वर्णन ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत में किया है जो भगवान बुद्ध के
पूर्वजन्म का व मानव जीवन के घटनाओं से संबंध रखता है ।शोधार्थी ने बताया कि इस स्थल की प्राचीनता व पुरातत्विक स्थल की वैज्ञानिक साक्ष्य तो भारतीय पुरातत्व विभाग अपने परीक्षण उत्खनन प्रतिवेदन में दे चुका है ।उन्होंने बताया कि यहाँ के विशाल बौद्ध विहार के अवशेष को ग्रामीणों व भारतीय रेलवे ने रेल पटरी के दोहरीकरण में ध्वस्त कर दिया जो ईंट बचा उसे क्षेत्रीय लोग ले जाकर अपने घरों में लगा दिए ,इस स्थल को पूर्व में 2009 में रेलवे के ठीकेदार ने इतना मिट्टी व ईंट निकाला अब यह छोटा तलाब का रूप ले लिया है फिर भी इसके विशाल नीव के चिन्ह व ईंट आज भी विद्यमान है पर अगर पुरातत्व विभाग ध्यान नहीं दिया तो ऐतिहासिक ,पुरातत्विक व धार्मिक महत्व का यह स्थल नष्ट हो जायेगा तथा केंद्र व राज्य सरकार का विरासत बचाओ अभियान श्लोगन बनकर रह जायेगा साथ ही जो यहाँ देश विदेश के पर्यटक आते रहते है तथा बौद्ध अनुयायियों के आस्था का स्थल विकसित नहीं हो पायेगा जिससे जिला वासी के पुरातत्विक ,ऐतिहासिक व धार्मिक भावनाओं का काफी आघात पहुँचेगा ।शोधार्थी ने बताया कि परीक्षण उत्खनन में जो छोटा शिलालेख मिला जो पानी में भी तैर रहा था तथा धरातल से 22 फीट नीचे मिला उस पर किसी लिपि में कुछ अक्षर अंकित है उसे पढ़ दिया जाय तो इस स्थल की वास्तविकता समझ में आ जायेगी पर दुःख इस बात की है कि अभी तक पुरातत्व विभाग इस लिपि को पढ़ नहीं पाया और न ही इसे इतिहासकारों के सामने ला रहा है । शोधार्थी ने बताया कि पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के अनुसार इस स्थल पर 22 सौ वर्ष तक का मानव गतिविधि पाया गया तथा गुप्तकाल के बाद का कुछ अवशेष नही मिला ।यह तथ्य बौद्ध स्थल का पुख्ता प्रमाण है ।क्योंकि बुद्ध के जीवन काल में यह मल्ल राजाओं का शालवन था तथा बुद्ध के महापरिनिर्माण के तीन सौ वर्ष बाद सम्राट अशोक ने यहाँ मिट्टी का स्तूप बनवाया तब से मानव गतिविधि आरम्भ हुई तथा गुप्तकाल के बाद यह स्थल वीरान हो गया । यानी पुरातत्व विभाग का कथन व इतिहास में दर्ज बातों में समानता है ।
शोधार्थी ने बताया कि यह ऐतिहासिक बहस का विषय है इस पर चर्चा होनी चाहिए ताकि इतिहास के वास्तविक निष्कर्ष पर पहुँचा जाय ।
ग्रामीण दयाशंकर चौबे ने बताया है कि हमारे गांव में जो स्तूप नुमा टीला है उसे हमलोग तीतिर स्तूप के नाम से पुकारते आ रहे है ।उन्होंने बताया कि हमारे गांव के बुजुर्ग कहते है कि इस स्थान के निकट भगवान बुद्ध का निधन हुआ था ।ग्रामीण सच्चिदानंद सिंह ने बताया कि बचपन में तीतिर स्तूप को हम बहुत बड़ा देखे थे अब तो धीरे धीरे इसका क्षरण होता जा रहा है । सदियों से यहाँ लोग भगवान बुद्ध की पूजा करते आ रहे है ।ग्रामीण माधव शर्मा ने बताया कि बचपन में स्तूप के किनारे किनारे मिट्टी की मूर्तियां व खिलौने मिलता रहता था ।उन्होंने बताया कि स्तूप के पास भगवान बुद्ध का मंदिर बना है जिसमें देश विदेश से भी लोग पूजा करने आते रहते है ।ग्रामीण धीरेंद्र सिंह ने बताया कि तीतिर स्तूप के पास ही साधना स्थल है ।हमारे बुजुर्ग बताते है कि पहले यहाँ साधु लोग ध्यान व साधना किया करते थे ।ग्रामीण व क्षेत्रीय ललितेश्वर राय , रजनीश कुमार मौर्य , वृज बिहारी दुबे ,हरिशंकर चौहान ,प्रमोद शर्मा ,वीरेंद्र तिवारी ,सच्चिन्द्र दुबे ,विपिन पाठक , मनीष दुबे , अंकित मिश्रा, अमित तिवारी ,अखिलेश श्रीवास्तव ,डॉ संजय गिरी , बबलू कुमार आदि ने बताया कि तीतिर स्तूप पर सदियों से भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना होते आ रहा है ।
"चीनी तीर्थ यात्रियों द्वारा वर्णित कुशीनगर ,वैशाली एवम अन्य स्थानों की पहचान "डॉ डी आर पाटिल की पुस्तक इन साइक्लोपीडिया एन्टीक्वेरियन इन बिहार ,केपी जयसवाल शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ जगदीश्वर पांडेय का पुस्तकऑन द फुट प्रिंट्स ऑफ बुद्धा ,डॉ बीपी सिन्हा का आलेख डाइरेक्टरी ऑफ बिहार आर्कियोलॉजी ,सिवान जनपत पर एक सम्पूर्ण संदर्भ ग्रंथ सोनालिका पृष्ट 128 ,बिहार डिस्ट्रिक्ट गजेटियर सारण 1960 सारण पृष्ट 15,डिक्शनरी ऑफ पाली प्रोपर नेक्स जीपी मलाल सेकर सेकेंड भाग ,पृष्ट 163,64 ,महापरिनिर्माण सुत्त बुद्धाचार्य राहुल सांस्कृत्यायन सेकेंड संस्करण पृष्ट 496 ,97 ,एल एस एस 1908 गजेटियर्स बंगाल ,प्रो हसन अश्क़री, डॉ बी बी मिश्रा ,डॉ प्रभुनाथ पाठक ,डॉ नागेंद्र कुमार की किताब सिवान में कुसीनगर की संभावना ,पत्रकार मुमताज इमाम ,इतिहासकार डीडी कोसांबी ,इतिहासकार कृष्ण कुमार सिंह की पुस्तक प्राचीन कुसीनारा का एक अध्ययन ,डॉ प्रफुल्ल कुमार मौन की पुस्तक बिहार के बौद्ध संदर्भ ,डॉ नागेंद्र पांडेय की पुस्तक मॉन्यूमेंट्स इन सिवान डिस्ट्रिक्ट ,3 दिसम्बर 2016 को सिवान जिला प्रशासन द्वारा प्रकाशित स्मारिका उड़ान ,अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में 11 जून 2015 में प्रकाशित आलेख बुद्धा सर्किट स्किप्स सिवान डिस्पेड रिसर्च लिंक ,द इंडियन नेशन में प्रकाशित आलेख प्लेस ऑफ बुद्धा निर्वाण ,हिदुस्तान अखबार में 1993 में प्रकाशित आलेख सिवान को प्राचीन कुसीनगर प्रमाणित करने का दावा ,26 नवम्बर 1997 में द टाइम्स ऑफ इंडिया पटना से प्रकाशित आलेख बुद्धास निर्वाण साइट ट्रेस्ट टू सिवान ,वर्ष 2009 में दैनिक जागरण ,हिंदुस्तान व प्रभात खबर में प्रकाशित आलेख ,यहाँ बुद्ध ने दिये थे अंतिम उपदेश ,मार्च 2015 में दैनिक जागरण में प्रकाशित आलेख बौद्ध सर्किट में सिवान की उपेक्षा इतिहास से अन्याय ,3 जुलाई 2014 में दैनिक जागरण में प्रकाशित आलेख व्रज पणि स्तूप को पहचान की दरकार ,9 जून 2014 को दैनिक जागरण में प्रकाशित आलेख जिले के जीरादेई में मिले प्रतात्विक अवशेष ,19 मई 2015में दैनिक जागरण में प्रकाशित आलेख ऐतिहासिक अवशेषों पर बहस की जरूरत ,12 जनवरी 2016 को हिंदुस्तान ,दैनिक जागरण ,प्रभात खबर ,आज ,राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित आलेख ,महापरिनिर्माण स्थल पहुँच भावुक हुए बौद्ध भिक्षु ,जनवरी 20 16 में राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित आलेख ,विदेशी बौद्ध रिसचर्स ने खोजे सिवान व बुद्ध के सम्बंध ,23 दिसम्बर 2014 को हिंदुस्तान व दैनिक जागरण में प्रकाशित आलेख सिवान में जमीन में मिली भगवान बुद्ध की मूर्ति ,दैनिक जागरण पटना से 5 अप्रैल 2015 को प्रकाशित आलेख ,तीतिर स्तूप को डीएम ने किया निरीक्षण ,प्रभात खबर 10 जून 2018 को प्रकाशित ,खुदाई में मिले बौद्ध कालीन मृदभांड के अवशेष ,15 जून 2018 को हिदुस्तान अखबार में ,जीरादेई में खुदाई में मिली भगवान बुद्ध की प्रतिमा ,5 फरवरी 2018 को प्रभात खबर ,हिदुस्तान ,दैनिक जागरण ,दैनिक भाष्कर ,राष्ट्रीय सहारा ,आज ,जनादेश एक्प्रेस आदि में उत्खनन में मिलने वाली वस्तु बौद्ध स्तूप जैसी ।9 फरवरी 2019 को दैनिक भास्कर में प्रकाशित आलेख ,"पुरातत्विक साक्ष्य से मिल रही भारतीय पुरातत्विक इतिहास को नयी दिशा । बाढ़ के कारण ही गुप्त युगीन साक्ष्य नष्ट हुए हो ।